| مصرع |
اکادمی2018 |
اکادمی2007 |
غلام علی |
قدیم |
کتاب |
آڈیو |
| بُوئے گُل کا باغ سے، گُلچیں کا دنیا سے سفر | 117 |
117 |
90 |
91 |
بانگ درا |  |
| خُونِ گُلچیں سے کلی رنگیں قبا ہو جائے گی | 222 |
222 |
195 |
215 |
بانگ درا |  |
| دستِ گُلچیں کی جھٹک مَیں نے نہیں دیکھی کبھی | 52 |
52 |
22 |
4 |
بانگ درا |  |
| فسُردہ رکھتا ہے گُلچیں کا انتظار اسے | 185 |
185 |
158 |
172 |
بانگ درا |  |
| مذاقِ جَورِ گُلچیں ہو تو پیدا رنگ و بو کر لے | 279 |
279 |
250 |
282 |
بانگ درا |  |
| نشانِ برگِ گُل تک بھی نہ چھوڑ اس باغ میں گُلچیں! | 99 |
99 |
70 |
65 |
بانگ درا |  |
| نہ باد بہاری، نہ گُلچیں، نہ بُلبل | 496 |
495 |
457 |
218 |
بال جبریل |  |
| نہ ہو قناعت شعار گُلچیں! اسی سے قائم ہے شان تیری | 156 |
156 |
130 |
138 |
بانگ درا |  |
| چمن میں گُلچیں سے غنچہ کہتا تھا، اتنا بیدرد کیوں ہے انساں | 163 |
163 |
137 |
146 |
بانگ درا |  |
| کس طرح تجھ کو یہ سمجھاؤں کہ مَیں گُلچیں نہیں | 54 |
54 |
24 |
6 |
بانگ درا |  |
| ہاتھ جس گُلچیں کا ہے محفوظ نوکِ خار سے | 183 |
183 |
156 |
169 |
بانگ درا |  |