مصرع |
اکادمی2018 |
اکادمی2007 |
غلام علی |
قدیم |
کتاب |
آڈیو |
آگ تکبیر کی سینوں میں دبی رکھتے ہیں | 196 |
196 |
168 |
184 |
بانگ درا |  |
اور ظُلمت رات کی سیماب پا ہو جائے گی | 221 |
221 |
194 |
214 |
بانگ درا |  |
بستی زمیں کی کیسی ہنگامہ آفریں ہے | 200 |
200 |
172 |
189 |
بانگ درا |  |
تلاطم ہائے دریا ہی سے ہے گوہر کی سیرابی | 297 |
297 |
267 |
304 |
بانگ درا |  |
جو آپ کی سیڑھی پہ چڑھا، پھر نہیں اُترا | 59 |
59 |
29 |
13 |
بانگ درا |  |
خامۂ قُدرت کی کیسی شوخ یہ تحریر ہے | 178 |
178 |
152 |
164 |
بانگ درا |  |
زندگی کیسی جو دل بیگانۂ پہلو ہوا | 217 |
217 |
190 |
210 |
بانگ درا |  |
فرنگیوں کی سیاست ہے دیوِ بے زنجیر | 665 |
665 |
615 |
154 |
ضرب کلیم |  |
مِہر کی ضوگستری، شب کی سِیہ پوشی میں ہے | 120 |
120 |
93 |
95 |
بانگ درا |  |
نیلی آنکھوں سے ٹپکتی ہے ذکاوت کیسی | 142 |
142 |
117 |
122 |
بانگ درا |  |
کیسی حیرانی ہے یہ اے طفلکِ پروانہ خُو! | 119 |
119 |
93 |
94 |
بانگ درا |  |
کیسی پتے کی بات جُگندر نے کل کہی | 206 |
206 |
178 |
196 |
بانگ درا |  |
کیسی کیسی دُخترانِ مادرِ ایّام ہیں! | 258 |
258 |
230 |
257 |
بانگ درا |  |
ہر ادا سے تری پیدا ہے محبّت کیسی | 142 |
142 |
117 |
122 |
بانگ درا |  |