مصرع |
اکادمی2018 |
اکادمی2007 |
غلام علی |
قدیم |
کتاب |
آڈیو |
آتی ہے ندّی فرازِ کوہ سے گاتی ہوئی | 52 |
52 |
23 |
5 |
بانگ درا |  |
جہاں خودی کا بھی ہے صاحبِ فراز و نشیب | 593 |
593 |
542 |
79 |
ضرب کلیم |  |
دل فرازِ عرش باشد نے بہ پست | 470 |
470 |
433 |
189 |
بال جبریل |  |
راز ہے انساں کا دل، غم انکشافِ راز ہے | 182 |
182 |
156 |
168 |
بانگ درا |  |
زوالِ عشق و مستی حرفِ رازی | 411 |
408 |
375 |
118 |
بال جبریل |  |
سَیل کے سامنے کیا شے ہے نشیب اور فراز | 481 |
480 |
442 |
201 |
بال جبریل |  |
صداے آبشاراں از فرازِ کوہسار آمد | 306 |
306 |
275 |
314 |
بانگ درا |  |
نشیب و فرازوپس و پیش سے | 455 |
456 |
420 |
173 |
بال جبریل |  |
نمود جس کی فرازِ خودی سے ہو، وہ جمیل | 593 |
593 |
542 |
79 |
ضرب کلیم |  |
وہ حرفِ راز کہ مجھ کو سِکھا گیا ہے جُنوں | 367 |
364 |
319 |
43 |
بال جبریل |  |
یزدانِ ساکنانِ نشیب و فراز تُو | 75 |
75 |
44 |
31 |
بانگ درا |  |