مصرع |
اکادمی2018 |
اکادمی2007 |
غلام علی |
قدیم |
کتاب |
آڈیو |
اے وائے تن آسانی! ناپید ہے وہ راہی | 686 |
686 |
636 |
177 |
ضرب کلیم |  |
بنایا عشق نے دریائے ناپیدا کراں مجھ کو | 349 |
350 |
302 |
13 |
بال جبریل |  |
دامنِ گردُوں سے ناپیدا ہوں یہ داغِ سحاب | 240 |
240 |
212 |
236 |
بانگ درا |  |
رہے نہ رُوح میں پاکیزگی تو ہے ناپید | 585 |
585 |
533 |
69 |
ضرب کلیم |  |
سلسلہ ہستی کا ہے اک بحرِ نا پیدا کنار | 177 |
177 |
151 |
163 |
بانگ درا |  |
مگر غنچوں کی صورت ہوں دلِ درد آشنا پیدا | 100 |
100 |
71 |
67 |
بانگ درا |  |
ناپید ترے بحرِ تخیّل کے کنارے | 460 |
461 |
425 |
178 |
بال جبریل |  |
ناپید ہے بندۂ عمل مست | 602 |
602 |
550 |
88 |
ضرب کلیم |  |
’عشق ناپید و خرد میگزدش صُورتِ مار‘ | 583 |
583 |
531 |
67 |
ضرب کلیم |  |