مصرع |
اکادمی2018 |
اکادمی2007 |
غلام علی |
قدیم |
کتاب |
آڈیو |
آہ یہ مرگِ دوام، آہ یہ رزمِ حیات | 720 |
720 |
663 |
239 |
ارمغان حجاز |  |
ابن مریم مر گیا یا زندۂ جاوید ہے | 711 |
711 |
656 |
227 |
ارمغان حجاز |  |
بتا مجھ کو اسرارِ مرگ و حیات | 451 |
452 |
417 |
169 |
بال جبریل |  |
تجھ کو خبر ہے اے مرگِ ناگاہ | 677 |
677 |
628 |
168 |
ضرب کلیم |  |
تری نجات غمِ مرگ سے نہیں ممکن | 523 |
523 |
473 |
3 |
ضرب کلیم |  |
تہذیبِ فرنگی ہے اگر مرگِ اُمومت | 608 |
608 |
558 |
95 |
ضرب کلیم |  |
حیاتِ جاوداں میری، نہ مرگِ ناگہاں میری! | 98 |
98 |
68 |
63 |
بانگ درا |  |
خود مُردہ و خود مرقد و خود مرگ مفاجات! | 741 |
741 |
680 |
262 |
ارمغان حجاز |  |
زوالِ علم و ہُنر مرگِ ناگہاں اُس کی | 723 |
723 |
666 |
243 |
ارمغان حجاز |  |
سُود ایک کا لاکھوں کے لیے مرگِ مفاجات | 432 |
435 |
399 |
146 |
بال جبریل |  |
عشق ہے مرگِ با شرف، مرگ حیاتِ بے شرف | 377 |
373 |
331 |
60 |
بال جبریل |  |
محکوم کا ہر لحظہ نئی مرگِ مفاجات | 591 |
591 |
540 |
77 |
ضرب کلیم |  |
مردِ درویش کا سرمایہ ہے آزادی و مرگ | 393 |
389 |
353 |
89 |
بال جبریل |  |
مرگِ خودی | 593 |
593 |
542 |
79 |
ضرب کلیم |  |
نہ مجھ سے پُوچھ کہ عمرِ گریز پا کیا ہے | 724 |
724 |
667 |
244 |
ارمغان حجاز |  |
وصل میں مرگِ آرزو، ہجر میں لذّتِ طلب | 440 |
442 |
406 |
155 |
بال جبریل |  |
کس درجہ یہاں عام ہُوئی مرگِ تخیّل | 635 |
635 |
586 |
123 |
ضرب کلیم |  |
کھول کے کیا بیاں کروں سِرِّ مقامِ مرگ و عشق | 377 |
373 |
331 |
60 |
بال جبریل |  |
کہ جاں مرتی نہیں مرگِ بدن سے | 355 |
412 |
389 |
26 |
بال جبریل |  |
ہو نہ روشن، تو سخن مرگِ دوام اے ساقی | 351 |
351 |
304 |
18 |
بال جبریل |  |
ہے جُرمِ ضعیفی کی سزا مرگِ مفاجات! | 488 |
487 |
449 |
210 |
بال جبریل |  |
ہے فقط محکوم قوموں کے لیے مرگِ ابَد | 718 |
718 |
662 |
236 |
ارمغان حجاز |  |
ہے نَزع کی حالت میں یہ تہذیبِ جواں مرگ | 651 |
651 |
602 |
141 |
ضرب کلیم |  |