مصرع |
اکادمی2018 |
اکادمی2007 |
غلام علی |
قدیم |
کتاب |
آڈیو |
آزاد کا دل زندہ و پُرسوز و طرب ناک | 744 |
744 |
682 |
266 |
ارمغان حجاز |  |
اخترِ صبح مضطرب تابِ دوام کے لیے | 150 |
150 |
124 |
131 |
بانگ درا |  |
ارشاد سُن کے فرطِ طرب سے عمَرؓ اُٹھے | 252 |
252 |
224 |
250 |
بانگ درا |  |
اور بُلبل، مطربِ رنگیں نوائے گُلِستاں | 178 |
178 |
152 |
164 |
بانگ درا |  |
اک نوجوان صُورتِ سیماب مُضطرب | 276 |
276 |
247 |
278 |
بانگ درا |  |
بنایا آہ! سامانِ طرب بیدرد نے اُن کو | 246 |
246 |
218 |
243 |
بانگ درا |  |
بے ذوق ہیں بُلبل کی نوا ہائے طرب ناک | 628 |
628 |
578 |
114 |
ضرب کلیم |  |
ذرّہ ذرّہ ہو مرا پھر طرب اندوزِ حیات | 144 |
144 |
118 |
124 |
بانگ درا |  |
رَکھّا ہے کچھ عیال کی خاطر بھی تُو نے کیا؟ | 252 |
252 |
224 |
250 |
بانگ درا |  |
شورشِ بزمِ طرب کیا، عُود کی تقریر کیا | 176 |
176 |
150 |
162 |
بانگ درا |  |
طرَب آشنائے خروش ہو، تُو نَوا ہے محرمِ گوش ہو | 313 |
313 |
280 |
320 |
بانگ درا |  |
مضطرب باغ کے ہر غنچے میں ہے بُوئے نیاز | 197 |
197 |
169 |
185 |
بانگ درا |  |
مضطرب بوندوں کی اک دنیا نمایاں ہو گئی | 184 |
184 |
157 |
170 |
بانگ درا |  |
مضطرب رکھتا ہے میرا دلِ بے تاب مجھے | 94 |
94 |
62 |
55 |
بانگ درا |  |
مضطرب رکھتی تھی جن کو آرزوئے ناصبور | 176 |
176 |
150 |
161 |
بانگ درا |  |
مضطرب ہوں، دل سکُوں ناآشنا رکھتا ہوں میں | 149 |
149 |
123 |
129 |
بانگ درا |  |
منتظر ہے کسی مُطرب کا ابھی تک وہ سرود! | 637 |
637 |
587 |
124 |
ضرب کلیم |  |
مُضطرب دل صفَتِ قبلہ نما بھی نہ سہی | 196 |
196 |
168 |
184 |
بانگ درا |  |
مُضطرب ہر دَم مری تقدیر رکھتی ہے مجھے | 267 |
267 |
237 |
267 |
بانگ درا |  |
مُضطرب ہے تُو کہ تیرا دل نہیں دانائے راز | 294 |
294 |
264 |
300 |
بانگ درا |  |
میں مضطرب زمیں پر، بے تاب تُو فلَک پر | 199 |
199 |
171 |
187 |
بانگ درا |  |
ہائے کیا فرطِ طرب میں جھُومتا جاتا ہے ابر | 52 |
52 |
22 |
4 |
بانگ درا |  |
ہے شعرِ عجَم گرچہ طرب ناک و دل آویز | 639 |
639 |
590 |
127 |
ضرب کلیم |  |
یہ شعرِ نشاط آور و پُر سوز و طرب ناک | 448 |
415 |
382 |
165 |
بال جبریل |  |