مصرع |
اکادمی2018 |
اکادمی2007 |
غلام علی |
قدیم |
کتاب |
آڈیو |
تیری عمرِ رفتہ کی اک آن ہے عہدِ کُہن | 52 |
52 |
22 |
4 |
بانگ درا |  |
تیرے سرودِ رفتہ کے نغمے علومِ نَو | 250 |
250 |
222 |
248 |
بانگ درا |  |
خودی بلند تھی اُس خُوں گرفتہ چینی کی | 643 |
643 |
594 |
133 |
ضرب کلیم |  |
دل ہمارے یادِ عہدِ رفتہ سے خالی نہیں | 179 |
179 |
153 |
165 |
بانگ درا |  |
رفتہ و حاضر کو گویا پا بپا اس نے کِیا | 256 |
256 |
228 |
255 |
بانگ درا |  |
رنگ ہائے رفتہ کی تصویر ہے ان کی بہار | 177 |
177 |
151 |
163 |
بانگ درا |  |
سینۂ ویراں میں جانِ رفتہ آ سکتی نہیں | 176 |
176 |
150 |
162 |
بانگ درا |  |
عصرِ رفتہ کے وہی ٹُوٹے ہوئے لات و منات! | 629 |
629 |
579 |
116 |
ضرب کلیم |  |
مَیں کہ مری غزل میں ہے آتشِ رفتہ کا سُراغ | 438 |
440 |
405 |
153 |
بال جبریل |  |
گوش آوازِ سرودِ رفتہ کا جویا ترا | 223 |
223 |
195 |
216 |
بانگ درا |  |
یادِ عہدِ رفتہ میری خاک کو اِکسیر ہے | 224 |
224 |
196 |
217 |
بانگ درا |  |
’گرفتہ چینیاں احرام و مکّی خفتہ در بطحا*‘! | 363 |
361 |
316 |
39 |
بال جبریل |  |