مصرع |
اکادمی2018 |
اکادمی2007 |
غلام علی |
قدیم |
کتاب |
آڈیو |
تعمیرِ خودی میں ہے خدائی | 387 |
383 |
345 |
79 |
بال جبریل |  |
تیری خدائی سے ہے میرے جُنوں کو گِلہ | 415 |
418 |
384 |
125 |
بال جبریل |  |
جب کہا اُس نے یہ ہے میری خدائی کی زکات! | 753 |
753 |
690 |
278 |
ارمغان حجاز |  |
جنھیں تُو نے بخشا ہے ذوقِ خدائی | 429 |
432 |
397 |
142 |
بال جبریل |  |
خدائی اہتمامِ خشک و تر ہے | 357 |
413 |
380 |
30 |
بال جبریل |  |
خداوندا! خدائی دردِ سر ہے | 357 |
413 |
380 |
30 |
بال جبریل |  |
خودی میں گُم ہے خدائی، تلاش کر غافل! | 382 |
378 |
338 |
69 |
بال جبریل |  |
خودی کی زد میں ہے ساری خُدائی! | 410 |
408 |
375 |
118 |
بال جبریل |  |
رازِ خدائی ہے یہ، کہہ نہیں سکتی زباں | 424 |
427 |
392 |
135 |
بال جبریل |  |
رہے تیری خدائی داغ سے پاک | 730 |
730 |
672 |
250 |
ارمغان حجاز |  |
گو اس کی خُدائی میں مہاجن کا بھی ہے ہاتھ | 359 |
356 |
312 |
33 |
بال جبریل |  |
ہو صاحبِ مرکز تو خودی کیا ہے، خدائی! | 687 |
687 |
637 |
178 |
ضرب کلیم |  |
ہُوا نہ کوئی خُدائی کا رازداں پیدا | 613 |
613 |
563 |
99 |
ضرب کلیم |  |
یہ بندگی خدائی، وہ بندگی گدائی | 388 |
384 |
346 |
80 |
بال جبریل |  |